जो ऊपर जाता है वह नीचे आता है यह एक पुरानी कहावत है जो हमने कई बार सुनी है लेकिन एक बात जो पता चली है जैसा हम समझते हैं गुरुत्वाकर्षण इतना सरल नहीं है
हेलो दोस्तों
मैं हूं पुष्पेंद्र इस ब्लॉग में, मैं आपके लिए लेकर आया हूं वह सारी जानकारी जो गुरुत्वाकर्षण के बारे में अभी तक मानव को प्राप्त हुई है | शुरुआती समय से लेकर अभी तक जो एक व्यवस्थित ज्ञान, विज्ञान में हमें बहुत से विद्वान लोगों के द्वारा दिया गया है उसको मैं आपको इस ब्लॉग के माध्यम से समझाऊँ गा |
तो चलिए गुरुत्वाकर्षण के कुछ शुरुआती सिद्धांतों के साथ शुरू करते हैं |
चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में उस समय के महान व्यक्ति अरस्तु ने गुरुत्वाकर्षण को पदार्थ की प्रकृति के रूप में वर्णित किया है उनका सिद्धांत भू-केंद्रित मॉडल के इर्द-गिर्द घूमता था | जिसमें उन्होंने बताया था कि पृथ्वी ब्रह्मांड के केंद्र में हैं | सभी पदार्थों के लिए प्राकृतिक स्थान केंद्र था इसलिए कोई भी चीज नीचे गिरती थी तो यह समझा जाता था की पदार्थ अपने प्राकृतिक स्थान पर पहुंचने की कोशिश करता है | पदार्थ के अलावा अन्य प्राकृतिक चीजों के लिए अन्य स्थान निर्धारित थे उदाहरण के लिए आग की लपटें ऊपर उठती है तो यह समझा गया की आग का स्थान आकाश में है हम यहां गुरुत्वाकर्षण के बारे में बात कर रहे हैं जिसका संबंध पदार्थ से हैं तो चलिए पदार्थ के बारे में बात करते हैं अरस्तु ने जो हमें बताया उसे हम स्थलिय गुरुत्व कह सकते हैं। यानी पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण का व्यवहार केवल वस्तुओं का एक उदाहरण था जो अपने प्राकृतिक स्थान पर जाने की कोशिश कर रहे थे आकाश एक अलग जगह थी। अरस्तु के अनुसार आकाश देवताओं द्वारा शासित था सूर्य, चंद्रमा, ग्रह, धूमकेतु और तारे प्रत्येक पृथ्वी पर केंद्रित, संकेंद्रित की संख्या में एंबेडेड थे। इन आकाशीय पिंडों की गति गोले के घूमने के कारण होती थी और इन आकाशीय पिंडों में गति का कारण व्यक्तिगत देवताओं के हस्तक्षेप से संभव होता था।
इस बात की कोई अवधारणा नहीं थी कि आकाश के पिंडॉ में भी उनका खुद का आकाशीय गुरुत्वाकर्षण होता है क्योंकि इस प्रकार के विचार अरस्तु के दिमाग में 400 ईसा पूर्व विकसित हुए थे उन विचारों में समय के साथ कुछ विकास हुआ जिनका वर्णन हम यहां कर सकते हैं यह एक लंबी कहानी है जिस मैं सभी समय के महान वैज्ञानिकों के दिमाग शामिल है 1546 में ग्रीक के खगोलविद टॉलेमी
ने भी कहां की पृथ्वी ब्रह्मांड के केंद्र में स्थित है ,धार्मिक रूप से ईसाई चर्च ने भूकेंद्री मॉडल को स्वीकृति दे दी थी क्योंकि ब्रह्मांड का यह मॉडल बाइबिल के उत्पत्ति अध्याय के अनुरूप था। चूँकि तत्कालीन यूरोप में चर्च और बाइबिल द्वारा प्रसारित ज्ञान और अरस्तू की मान्यताओं के अनुसार ही सत्य और असत्य का निर्धारण होता था | लेकिन अरस्तू-टॉलेमी का भूकेंद्री मॉडल अत्यधिक जटिल होने के साथ-साथ ब्रह्मांड का सही चित्रण करने में असमर्थ सिद्ध हो रहा था |
निकोलस कोपरनिकस का सूर्य केंद्रित ब्रह्मांड :
निकोलास कॉपरनिकस ने खगोलीय समुदाय को तब हिला कर रख दिया जब उन्होंने कहा कि पृथ्वी ब्रह्मांड के केंद्र में नहीं है |
उन्होंने बताया कि ब्रह्मांड के केंद्र में सूर्य है इस बात से धार्मिक आस्था वाले लोग ज्यादा खुश नहीं थे लेकिन यह उस समय कसौटी पर और खरा उतरा जब एक पॉलिश खगोल शास्त्री जोहान्स केप्लर ने कोपरनिकस की बात में अतिरिक्त योगदान दिया। उन्होंने अपने गुरु टाइको ब्राही द्वारा किए गए सटीक खगोलीय अवलोकनो का उपयोग यह निर्धारित करने के लिए किया कि वे उनके डाटा की व्याख्या कर सकते हैं यदि ग्रह अंडाकार कक्षाओं में सूर्य की परिक्रमा करते हैं तो वह विभिन्न ग्रहों की गति का पता लगाने में भी सक्षम थे। और उन्होंने पाया कि वह अलग अलग गति से चलते थे |
गैलीलियो गैलीली द्वारा दिए गए निष्कर्ष
इसके ठीक बाद गुरुत्वाकर्षण के बारे में अधिक जानकारी देने वाले व्यक्ति थे। इतावली खगोलशास्त्री और भौतिकविज्ञानी गैलीलियो गैलीली उन्होंने पृथ्वी और आकाश दोनों जगह पदार्थ के व्यवहार का अध्ययन किया। पुरानी बातों से पता चलता है की गैलीलियो ने पीसा की झुकी हुई मीनार से भारी और हल्की वस्तुओं को गिराया और प्रदर्शित किया कि वह एक ही दर पर गिरे थे जिससे शायद उसने अपने निष्कर्ष निकाले थे यह कहानी शायद एक अपोक्रायफल (शंकायुक्त) है। उसने वस्तुओं को रैंप पर लूड़का कर भी देखा और इस प्रकार पदार्थों के व्यवहार का उसने पता लगाया लेकिन उसके निष्कर्ष सही भी थे | गैलीलियो ने भी आकाश का अध्ययन किया उसने नए-नए दूरबीन का उपयोग किया। दूरबीन का आविष्कार गैलीलियो ने नहीं किया था लेकिन उसने इसके मॉडल के बारे में सुना और फिर इसमें नए-नए दूरबीन बनाएं और उनका उपयोग खगोल विज्ञान में करने का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने पाया की बृहस्पति के चंद्रमा उपग्रह है। जो इस विचार की ओर मजबूत पक्ष रखता है की ब्रह्मांड के केंद्र रूप में सूर्य और पृथ्वी नहीं है। लेकिन इस बात से भी कोई एकीकृत स्पष्टीकरण नहीं था कि पृथ्वी पर चीजें कैसे गिरती है और आकाश में वस्तुएं कैसे चलती है ।
सर आइज़क न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत
यह ब्रिटिश पॉलमैथ सर आइज़क न्यूटन थे जिन्होंने वास्तव में महत्वपूर्ण अग्रिम जानकारियां दी वह अब तक के समय के सबसे चतुर और वैज्ञानिक रूप से प्रभावशाली व्यक्ति थे जितनी चीजें वह समझाने में सक्षम थे वह बस चौंका देने वाली है। लेकिन गुरुत्वाकर्षण के दृष्टिकोण से उन्होंने जो प्रदर्शित किया वह एक ऐसा मॉडल था जिसने पहली बार यह प्रदर्शित किया कि आकाश के पिंडॉ और धरती का गुरुत्वाकर्षण एक जैसा व्यवहार करते हैं। और बस इसी कारण से हम इसे न्यूटन का सार्वभौमिक गुरुत्वाकर्षण का नियम कहते हैं।
उन्होंने बताया कि 2 वस्तुओं के बीच एक बल लगता है यह वस्तु के द्रव्यमान द्वारा शासित पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण बल होता है यह वस्तुओं के बीच की दूरी के वर्ग के व्यतिक्रमानुपाती होता है |

न्यूटन का यह गुरुत्वाकर्षण का नियम जितना सफल है उससे कहीं ज्यादा रहस्य में है यह बहुत हद तक सफल इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि इस नियम का पालन करके हम सौरमंडल में किसी भी उपग्रह या ग्रह की यात्रा कर सकते हैं और पता लगा सकते हैं की ग्रह कैसे चलते हैं मरकरी ग्रह सूर्य के बहुत नजदीक है अतः यहां पर हम न्यूटन के इस नियम से यात्रा नहीं कर सकते हैं यहां हमें सामान्य सापेक्षता के आइंस्टीन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की आवश्यकता होगी। बाकी के सौरमंडल के लिए न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत बहुत अच्छा है।
लेकिन यह रहस्यमय है न्यूटन ने खुद यह माना है उन्होंने कहा कि ग्रहों को कैसे पता चलता है कि गुरुत्वाकर्षण बल कितना मजबूत है उन्होंने कहा कि सूर्य और ग्रहों के बीच कुछ नहीं है और खाली जगह पर कुछ दूरी तक इसका प्रभाव रहता है न्यूटन को खुद इस बात का पता नहीं चला की एक निश्चित दूरी तक ही गुरुत्वाकर्षण बल का प्रभाव क्यों रहता है न्यूटन इस बात से बहुत परेशान था और न्यूटन को खुद को यह बात पसंद नहीं आई और इसलिए उसने इसे रहस्यमय भी कहा था । इस बात का जिक्र उन्होंने अपनी पुस्तक प्रिंसिपल मैथमैटिका में भी किया है और यह कहां की मैं यह कार्य आने वाली पीढ़ियों के लिए छोड़ता हूं कि वह इस बात का पता करें की एक निश्चित दूरी तक ही गुरुत्वाकर्षण बल का प्रभाव क्यों रहता है ।
न्यूटन के बाद अट्ठारह सौ के आसपास एक फ्रांसीसी गणितज्ञ और भौतिक विज्ञानी पियरे सिमोन लेप्लेस जिसके बारे में आपने बहुत कम सुना होगा वह गुरुत्वाकर्षण के थोड़ा अलग सिद्धांत के साथ आया यह मूल रूप से न्यूटन के सिद्धांत के समान ही है इसकी सभी प्रायोगिक भविष्यवाणियों में एक बार जब आपके पास न्यूटन का व्युत्क्रम वर्ग नियम है तो लेप्लेस आपको एक अलग नियम नहीं दे रहा है वह आपको एक ही नियम प्राप्त करने के लिए एक अलग तरीका दे रहा है लेप्लेस के अनुसार गुरुत्वाकर्षण के बारे में सोचने के बजाय अंतरिक्ष में हर बिंदु पर एक संख्या के बारे में सोचें। जिसे लेप्लेस गुरुत्वाकर्षण शक्ति कहा जाता है और गुरुत्वाकर्षण के लेप्लेस के संस्करण में वह न्यूटन के समीकरणों को इस गुरुत्वाकर्षण संभावित क्षेत्र के समीकरणों के साथ बदल देता है और वह दो चीजों के बारे में बात करता है
नंबर 1
एक बड़ी विशाल वस्तु क्षेत्र को धक्का देकर उसके आकार मूल्य को बदल देती है।
नंबर 2 और जिस मात्रा से क्षेत्र बदल रहा है वह ढलान क्षेत्र आपको गुरुत्वाकर्षण के कारण बल देता है जिसे आप एक पहाड़ी की ढलान जैसा सोच सकते हैं और ढलान की दूरी के कारण जो क्षेत्र बनता है वह क्षेत्र ही किसी वस्तु को बल प्रदान करता है और इस बल का मान भी न्यूटन के विचार के समान ही है। लेकिन अंतर यह है होता है की लेप्लेस द्वारा दिए गए सिद्धांत में दूरी पर कार्यवाही नहीं होती है बल्कि क्षेत्र हर जगह होता है इसलिए हम देखते हैं हमारे सौरमंडल में भी सूर्य आसपास के क्षेत्र को प्रभावित करता है यह क्षेत्र पूरे ब्रह्मांड में फैला रहता है और हर एक आकाशीय पिंड जितना उसका ज्यादा द्रव्यमान होता है उतना ही क्षेत्र में यह क्षेत्र ढलान के रूप में बनता है और उसी क्षेत्र में वह आसपास के क्षेत्र को प्रभावित करता है इस नियम के अनुसार दूरी पर कोई क्रिया नहीं होती है इसमें हमें बताया गया है की क्षेत्र हर जगह है भले ही आप इसे नहीं देख सकते हैं और यही वह क्षेत्र है जो गुरुत्वाकर्षण बल को जन्म देता है।
आइंस्टीन के पहले भौतिक शास्त्रियों ने गुरुत्वाकर्षण को एक बल के रूप में सोचा जो बड़े पैमाने पर वस्तुओं को एक दूसरे की ओर आकर्षित करता है और एक अर्थ में यह सही भी है कि गुरुत्वाकर्षण हमें नीचे की ओर पृथ्वी की ओर खींचता है और गुरुत्वाकर्षण के वजह से पृथ्वी भी सूर्य की ओर अपनी कक्षा में खींची रहती है लेकिन गुरुत्वाकर्षण का यह दृष्टिकोण उस घटना को अधिक महत्व को पहचानने में विफल रहता है जिसे न्यूटानियन दृष्टिकोण मैं गुरुत्वाकर्षण कहते हैं पहली बार आइंस्टीन ने खोजा था कि गुरुत्वाकर्षण केवल एक बल नहीं है बल्कि इसके बजाय अंतरिक्ष और समय के आकार में ज्यामिति कि एक बहुत बड़ी अभिव्यक्ति है | आइंस्टीन के अनुसार द्रव्यमान और अन्य ऊर्जा की उपस्थिति आसपास के अंतरिक्ष और समय की ज्यामिति बदल देती है क्या इससे घुमा देती हैं और यह वक्रता या ताना बाना वस्तुओं को अंतरिक्ष में अलग तरीके से स्थानांतरित करने का कारण बनता है अगर ऐसा नहीं होता जब कोई वस्तु अंतरिक्ष में दूर जाती हैं तो किसी भी विशाल पिंड और किसी भी बल द्वारा खींचे या धकेले बिना यह बस एक सीधी रेखा में अच्छी तरह से आगे बढ़ती हैं आइंस्टीन के अनुसार पृथ्वी सूर्य के चारों ओर अपनी कक्षा में चलती है तो यह भी एक सीधी रेखा में चलती है सूर्य की उपस्थिति होने के कारण सौरमंडल की ज्यामिति को फिर से आकार देना और पृथ्वी की प्रक्षेपवक्र में गुरुत्वाकर्षण को बदलना कोई बल नहीं है आइंस्टीन के अनुसार यह एक प्रकार की ज्यामिति होती हैं इस ज्यामिति के संदर्भ में गुरुत्वाकर्षण की व्याख्या करके द्रव्यमान और ऊर्जा का परिमाण है इस बात को रख के आइंस्टीन ने सैकड़ों वर्षो से स्थापित भौतिकी के नियम को उलट दिया इसके अलावा उनका सिद्धांत ने केवल गहन रूप से रचनात्मक और गणितीय रूप से सुरुचिपूर्ण था बल्कि इससे भी कहीं ज्यादा सही है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें